Sunday, November 8, 2009

koi devana samajta hai koi pagal samajh ta hai

कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता हैमगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता

हैमै तुझसे दूर कैसा हू तू मुझसे दूर कैसी हैये मेरा दिल समझता है या तेरा दिल समझता

हैमोहबत्त एक अहसासों की पावन सी कहानी हैकभी कबीरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी

हैयहाँ सब लोग कहते है मेरी आँखों में आसूं हैजो तू समझे तो मोती है

जो ना समझे तो पानी हैमै जब भी तेज़ चलता हू नज़ारे छूट जाते हैकोई जब रूप गढ़ता हू

तो सांचे टूट जाते हैमै रोता हू तो आकर लोग कन्धा थपथपाते हैमै हँसता हू तो अक्सर लोग मुझसे रूठ जाते हैसमंदर पीर का अन्दर लेकिन रो नहीं सकताये आसूं प्यार का मोती इसको खो नहीं सकतामेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन लेजो मेरा हो नहीं पाया वो तेरा हो नहीं सकताभ्रमर कोई कुम्दनी पर मचल बैठा तो हंगामाहमारे दिल कोई ख्वाब पल बैठा तो

अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोह्बत्त कामै किस्से को हक्कीकत में बदल बैठा तो हंगामाबहुत बिखरा बहुत टूटा थपेडे सह नहीं पायाहवाओं के इशारों पर मगर मै बह नहीं पायाअधूरा अनसुना ही रह गया ये प्यार का किस्साकभी तू सुन नहीं पाई कभी मै कह नहीं पाया..

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